अमर प्रेम

नमस्कार,
देखिये बोला था ना, पिछली बार आपको बताया था के हमारे जैसे स्फूर्तिवान युवक से ज्यादा अपेक्षा ना रखें। देखिये आज १२ दिन बाद नए साल की बधाइयाँ देने आया हूँ। आशा करता हूँ के यह नया साल आप सभी के लिए हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण होगा। आज आप सभी से मुखातिब होने का एक और भी कारण है। आज हमारे मित्र, श्री हरी गोविन्द के परम भक्त, श्री राहुल जी महाराज का जनम उत्सव भी है। जी हाँ यह वही शक्श हैं जिनका ज़िक्र अपने पिछले पोस्ट में कर चुका हूँ।  पिछले साल इसी समय के आस पास इन महाशय के घर पर कुछ अत्यंत कुशाग्र एवं कुशल चोरों ने दिन दहाड़े अपने कौशल का प्रदर्शन किया था। परन्तु देखिये ना रघुनन्दन की लीला, जहाँ पिछले साल की शुरुआत में इन महाशय के घर से कुबेर का धन गया,  वहीं साल  के जाते जाते घर में स्वयं लक्ष्मी का प्रवेश हो गया। जी हाँ, श्री कृष्ण की भांति, हमारे मित्र को भी गोपियों के मध्य में उनकी रुक्मणि मिल ही गयी। परमात्मा से यही कामना है के वो इनका आने वाला जीवन सुखद रखें और सारे विघ्न हर लें।
देखिये जनाब प्रेम को आप किसी बंधन में नहीं बाँध सकते। सच्चा प्रेम केवल वो नहीं जो दो इंसानो में हो। कई प्रेम कहानियो में शब्दों की जगह नहीं होती। समाज ऐसे प्रेम को पहचानने से इंकार कर देता है। परन्तु प्रेम तो प्रेम है। और ऐसी ही एक प्रेम कहानी हमारी है। हमारा और मूंगफलियों का प्रेम किसी से छुपा नहीं है। सर्दियां आते ही हमारी नजदीकियां भी बढ़ जाती हैं। यह प्रेम ही है जो हमे कड़कड़ाती ठण्ड में अपनी गरम रज़ाई से निकलने पे मजबूर कर देता है, यह प्रेम ही है जो हर पल हमे उसकी कमी महसूस होती है, और जब वो किसी और के पास होती है तो हम ईर्ष्या से जल उठते हैं, ये ये भी तो प्रेम ही है। हमे उन लोगो से बहुत शिकायत है जो एक छोटी सी मटकी से आग जला के मूंगफली भूनते है। अरे जनाब, यह अन्याय है। मूंगफलियों के साथ सरासर दुर्व्यहार है। मूंगफलियों का सही सम्मान तो नमक में भून कर ही होता है। यह छोटी सी मटकी में वो बात कहाँ।
कहते है के गोस्वामी तुलसीदास भगवान् राम के बाल रूप को देख के इतने आनन्दित थे और उनको रघुनन्दन के मुख के सामान और कोई वास्तु तुलना करने योग्य मिली ही नहीं। इसीलिए उन्होंने कहा के
   “रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां”
बस यही स्तिथि हमारी है। मूंगफलियों के सामान केवल मूंगफली ही हो सकती है, और कुछ नहीं। क्या करे साहब, प्यार में इंसान पगला जाता है, जिससे प्यार करता है उससे अच्छा और बेहतर कोई और नहीं दिखता।
चलते चलते
                                      हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा 
                                      कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
                                                                                       -अहमद फ़राज़

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