कल्पना के घोड़े, खा पकोड़े

नमस्कार,

आशा है सब कुशल मंगल होगा। आप और आपका परिवार स्वस्थ रहे और राशन की कोई कमी न हो यही कामना करता हूँ। अब देखिये प्रभु, घर में पड़े पड़े अपनी तोंद पे चर्बी चढ़ाने का शौक तो हमे बचपन से ही था परन्तु इस बार तो अति ही हो गयी। तोंद के साथ – साथ चर्बी चढ़ गयी है हमारे घोड़े को। अब आप कहेंगे की घोड़ा कहा से ले आये। अब वो दिन तो हैं नहीं की किसी राजा के दरबार में हम राज कवि लगे हो और चाटुकारिता करते – करते पशु धन प्राप्त हो जाये।

तो जनाब घोड़ा कहा से आया? आया तो आया, परन्तु हमारे रहते उसने इतना कैसे खाया की चर्बी हमारी तोंद से स्थानांतरित हो कर घोड़े पे चढ़ जाये? अरे सब्र रखिये। पहली बात तो यह की घोड़ा है हमारी कल्पना का।और उसपे कितनी चर्बी चढ़ गयी है इसका अंदाज़ा तो आप इस लेख के स्तर से ही लगा सकते है। पूरा दिन हमारे साथ-साथ निठल्ला बैठा रहता है। कितना भी बोलो परन्तु टस से मस नहीं होता। एक समय था की हमारी कप्लना का घोड़ा टग-बग, टग-बग दौड़ता था और फुर्र से संसार के किसी भी कोने में पहुंच जाता था। और आज का दिन है, कम्बख्त ने मानो संत शिरोमणि मलूकदास के “अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।” वाले दोहे को जीवन में समाहित कर लिया हो।

अब तो हाल यह है की घर में पड़े-पड़े मैं और मेरी कल्पना का घोड़ा अक्सर यह बातें करते हैं की बटर नान होती तो कैसा होता, शाही पनीर होता तो कैसा होता, छोले भठूरे होते तो, प्याज के पकोड़े ….. आप सार समझ गए होंगे। अब करे भी तो क्या करे, लॉक डाउन में घर में रोज़ रोज़ अपने कर कमलो द्वारा किये गए अविष्कारों को खा खा कर हालत बुरी हो गयी है। जिस प्रकार भक्त की आँखें प्रभु दर्शन की प्यासी होती है उसी प्रकार हमारी भी आंखें भिन्न भिन्न व्यंजनों के दर्शनों की अभिलाषी है।

ऐसी विषम परिस्तिथियों में हम अपने कल्पना के घोड़े को भी क्या कह सकते है। उसे जहा मौका मिलता है पहुंच जाता है स्वादिष्ट व्यंजनों के काल्पनिक समन्दर में गोते लगाने। अब जब तक यह लॉक डाउन नहीं खुलता और हमारी पेट की अग्नि में विभिन्न प्रकार के व्यंजन की आहूति नहीं अर्पित होती, तब तक हमारी कुंद बुद्धि तप कर कुंदन कैसे होगी।

ईश्वर से आप भी प्रार्थना करिये की यह संकट की घड़ी शीघ्र समाप्त हो और आप को ऐसे लेख को पड़ने की पीड़ा से मुक्ति मिले।

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