केम छो ?

नमस्कार,

पता है !! पता है !! नहीं मरा नहीं था, न ही पुनर्जन्म ले कर आया हूँ,यही था, इसी धरती पर। बस कुछ लिखा नहीं। लिखने के लिए कुछ होता तो लिखता ना। वैसे भी हमारे जैसे कुम्भकरण के महा भक्त को लिखने के लिए प्रेरित करने वाली घटनाएं कम ही होती हैं आज कल। अब आप बोलेंगे के घटनाएं तो रोज़ घटती हैं अपने देश में। मान गया सरकार, कि घटनाये रोज घटती है परन्तु उसपे तो सभी लिखते हैं। हम तो तब लिखें जब हमारे साथ कुछ घटित हो। बस आप सब की दुआओं का असर था कि हो ही गया कुछ घटित।तो बात ऐसी है की एक रात सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन साहब ने हमारे स्वप्न में आ कर बोला की, बेटा केवल श्री राम और श्री कृष्ण की जन्म भूमि पे जनम लेने से कुछ न होगा। कुछ तो और करना पड़ेगा साथ में , कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में।

उनके आदेशानुसार हम टिकट कटा कर आ पहुंचे द्वारिका नगरी। मालूम है कि नगर तो जल मग्न है। परन्तु थोड़ा नाटकीय टच लाने के लिए लिखना पड़ता है। आप को भी पता है की श्री अमिताभ बच्चन जी को स्वप्न में भी बुला सके इतनी औकात नहीं अपनी। अब अगर यह लिखता कि हरयाणा से निकल कर गुजरात आ गया तो क्या ख़ाक समां बांधता। जनाब लेखक को यह सब घाल मेल करना पड़ता है ताकि रोचकता बनी रहे। वरना भारतीय रेल में रोज हज़ारो लोग एक छोर से दूसरे छोर तक का सफर तय करते है। अब इनमें से आधे भी अगर लिखने लगे तो चल चुकी हमारी दुकान। चलती तो ख़ैर अभी भी नहीं है पर दिल को बहलाने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है।

खैर छोड़िये यह सब, हम तो आप को यह बता रहे थे की आ गए हम गिर के शेरों से मिलने। सोचा था की मरुस्थल होगा, सूखा, उजाड़। परन्तु जैसे ही बड़ौदा एयरपोर्ट से निकले हम सावन के अंधे बन गए। जिधर देखो उधर हरियाली। अपने सूछम ज्ञान पे हमको शर्मिंदगी हुई। बड़ौदा ने तो दिल जीत लिया हमारा। होता है न, कभी किसी नयी जगह जाने पर भी सब कुछ अपना सा लगता है। बस वैसा ही कुछ एहसास हुआ। पूरा रास्ता हरा भरा , सावन की हलकी हलकी बूंदे। हमे तो लगा ही स्वर्ग आ गए। परन्तु भगवन भी हमे इतनी जल्दी स्वर्गवासी होने नहीं देंगे। भाईसाहब, अगले दिन जो गर्मी पड़ी है !! हे मुरलीधर आप ने कैसे यहाँ मुरली बजायी हमारी समझ से तो परे है। सूर्य नारायण तो ऐसी गर्मी बरसा रहे थे मनो सींक कबाब बना के ही मानेंगे।

जैसे तैसे दिन काट कर वापस आये कमरे पे। होटल वालो ने रूम सर्विस के नाम पे एक फ़ोन लगा दिया था कमरे में। हमने भी आओ देखा न ताओ और मिला दी घंटी। भूख आदमी को व्याकुल कर देती है, हमारे जैसे पेटू को तो कुछ ज्यादा ही करती है। तो फ़ोन उठा के हम गरजे परन्तु जब सामने से गुजराती में जवाब आया तो तुरंत ही शांत हो गए। समझ न आया क्या बोले। गुजराती तो उतनी ही आती है जितनी तारक मेहता ने सिखाई थी। और बहुत समय से तो देखा भी नहीं, रिविज़न ही नहीं हुआ। जैसे तैसे बोला के खाना भिजवा दो।थोड़ी ही देर में एक देवदूत हाथों में थाली लिए प्रस्तुत हो गया। हमने उसको धन्यवाद दे कर विदा किया। पेट में चूहे धमा चौकड़ी मचा रहे थे। हम भी तुरंत टूट पड़े खाने पर। खाने की तारीफ करने को शब्द नहीं हैं हमारे पास, बस बेदह मीठी यादें है। परन्तु यदि आप अगर पहली बार गुजरात आये हैं और मधुमेह के रोगी है तो काठियावाड़ी थाली से परहेज़ करे।

खाने की ही भांति इंसान भी बेहद मीठे और मिलनसार। उपरवाले की कृपा रही है हम पे की चाहे जहाँ भी रहे पर लोग हमेशा बड़े अच्छे मिले हैं। बच्चन साहब यूँ ही नहीं कहते के कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में। सच में यह जगह ही ऐसी है। चलिए आज कुछ ज्यादा ही लिख गए। इतना तो पढ़ा भी नहीं जायेगा आपसे।

चलते चलते –

नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो

सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो

-महताब हैदर नक़वी

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