नया साल और सफ़ेद बाल

नमस्कार ,एक और साल बीत गया जनाब, और हमारे अंदर फिर से कुछ लिखने का भूत जाग गया। वैसे देखा जाये तो लगभग डेढ़ साल से कलम को जंग लगी हुयी थी। कलम तो क्या ही जनाब, असल में तो जंग दिमाग में लगी हुई थी। वैसे तो अभी भी लगी हुई है परन्तु आज हिम्मत कर के कुछ घिसाई करी है, देखिये शायद दिमाग की मोटर चालू हो जाये। एक तो आज नया साल और साथ ही रविवार की छुट्टी। मतलब मौका और दस्तूर दोनों ही। वैसे तो मौके और भी आये, परन्तु यह दिमाग साथ नहीं देता। दिल में आता है के कुछ नयी गप लिखी जाये परन्तु हमारे नीरस जीवन में कुछ नया हो तब तो लिखे। मुल्ला की दौड़ मस्ज़िद तक और हमारी हमारे दफ्तर तक। नौकरी में इतने मशगूल हो गए की जीवन में और किसी बात की खबर ही नहीं रहती। अब यह मत समझिये की अपने मुँह मियां मिट्ठू बन रहे हैं और अपनी कर्मठता का सर्टिफिकेट दे रहे हैं। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है, कहने का अर्थ केवल इतना है की कुल मिला के जीवन में लिखने लायक कुछ घटित नहीं हो रहा था।

ख़ैर चलिए नया साल आया और साथ कुछ लिखने की प्रेरणा भी लाया। कल रात से ही सोचा था की आज तो कुछ लिख के श्री गणेश करेंगे ही, परन्तु दुविधा वही की क्या लिखें। सुबह सुबह नए साल में शीशे में अपना सुन्दर मुखड़ा निहारते हुए आभास हुआ की सफेदी कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। अब देखिये दूध सी सफेदी कपड़ो पे आये तो अच्छी लगती है, बालों पे नहीं। नए साल का यह उपहार आँखों को कुछ खटका। अब बालों की सफ़ेदी तो हमारे स्कूल के समय से ही थी। उस समय तो कुछ दोस्तों को लगता था की हम बहुत बड़े फैशनेबुल इंसान है जिसने बालों को सफ़ेद रंगा है। उन्हें लगता था और हमने लगने दिया। परन्तु बालपन का फैशन आज की समस्या बन गया है। और चलिए सर के बाल तक तो ठीक था यह दाढ़ी के कुछ सफ़ेद नटखट बाल, सारे बालो के बीच अपना अपना सौन्दर्य प्रदर्शित करने बाहर चले आते है।

अब करे भी तो क्या करे। समय की धारा को मोड़ पाना हमारे हाथों में नहीं है। मनुष्य के जीवन में अलग अलग पड़ाव आते हैं। नए अवसर और चुनौतियां भी आती हैं। इसी बात पे एक किस्सा याद आया, हुआ यूँ की एक बार एक चेले ने अपने गुरु को एक आम का पौधा दिखा कर बोला – हे गुरुदेव, मैं एक आम का पेड़ लगाना चाहता हूँ, परन्तु सही समय और मुहूर्त का ज्ञान नहीं है। कृपया सही समय बतायें ताकि यह कार्य सफल हो। गुरुदेव बोले- हे शिष्य, इस आम के पेड़ को लगाने का सही समय तो बीस वर्ष पूर्व था। गुरुदेव का उत्तर सुन कर चेले का मनोबल टूट गया। वह बोला की अब क्या करे गुरुदेव, बीस वर्ष पूर्व तो मैं पैदा भी नहीं हुआ था, तो क्या अब यह कार्य सिद्ध नहीं हो सकता? गुरु ने उसकी और देखा और मुस्कुरा कर बोले, चिंतित न हो शिष्य, इस पौधे को लगाने का दूसरा मुहूर्त आज हैं। शिष्य यह सुन कर थोड़ा असमंजस में पड़ गया तो गुरुदेव ने समझाया की किसी कार्य को करने के लिए किसी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा करना समझदारी नहीं है। जिस घड़ी वो कार्य प्रारम्भ कर दो वही शुभ घड़ी है। तो इस किस्से में उस शिष्य को यह बात का ज्ञान नहीं था की हर पल का महत्त्व एक बराबर होता हैं। सही समय की प्रतीक्षा में किसी कार्य को ना करना समझदारी नहीं है। पर हम ठहरे अज्ञानी अबोध बालक, इसीलिए बैठे हुए थे नए साल के इंतज़ार मे, की कब नया साल आये और हम अपने दिमाग के जाले को साफ़ करे। पर चलिए देर आये दुरुस्त आये।

आज तो कुछ ज्यादा ही बक-बक कर ली। चला जाये, नया साल है, हमारी बालो की सफेदी देख कर कोई और खुश हो या न हो, हमारे सलून वाले बड़े खुश होते है, की चलो आ गया बकरा, उनका हैप्पी न्यू ईयर हैप्पी करवाने की जिम्मेदारी हमने ही उठायी है। तो आज्ञा दीजिये। आप सभी को नूतन वर्ष की अनेक शुभकामनाएं।

चलते चलते-

“न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए
ख़ुदा करे कि नया साल सब को रास आए”