नया साल

नमस्कार,

लो जी सरकार , एक बार फिर मुँह उठा के आ गया।  अजी इस बार में अपनी बात नहीं कर रहा , बात हो रही है नए साल की। हर साल ये नया साल मुँह उठा के चला आता है।  बड़ा बेशर्म सा है।  हर साल आता है।अब इस नए साल में नया क्या है ये तो आप भी जानते हैं और हम भी।  वही पुराने हम और आप और वही पुराना किस्सा।  वही पुराने टूटते सपने और वही पुराना हौसला के इस साल तो सपने सच होंगे। सपने टूटते है पर हौसला नहीं , हाँ साल जरूर बदल जाता है और साथ ही कई सपने भी।  

यूँ तो हर नए साल के साथ हम कई नए सपने भी जोड़ देते हैं , मसलन नए साल में फिजूल के खर्च बंद या बाहर  का खाना बंद  या जल्दी उठना शुरू कर देंगे।  पर जनाब सपने तो सपने ही होते है। अगर सभी सपने हकीक़त में तब्दील हो गए तो अनर्थ हो जायेगा।  ज़रा सोचिये तो यदि हमारे जैसे सच्चे कुम्भकरण भक्त के द्वारा आधी रात में नव वर्ष के उपलक्ष्य में लिए गए संकल्प सच हो गए तो क्या होगा।  अनर्थ हो जायेगा जनाब अनर्थ! मेरी प्रजाति  के सभी बंधुगढ़ यदि ये संकल्प ले लें के भाई कल से बाहर का चटर – पटर खाना बंद तो इन बेचारे रेड़ी वालो की तो रोज़ी रोटी बंद हो जाएगी।  यही नहीं यदि हम सभी अपने स्वास्थ के प्रति सचेत हो गए तो इन चिकित्सकों का क्या होगा।  वे बेचारे किसकी सेवा करेंगे।  क्या सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए उनसे उनका सेवा करने का सुख छीनना ठीक है ? 

कदापि नहीं , इसीलिए अपने निजी स्वार्थ को किनारे रखते हुए हमे परमार्थ की भावना से कार्य करना चाहिए। जरा सोचिये की आप जिन आदतों को छोड़ने का संकल्प लेने जा रहे हैं , उन्ही आदतों के भरोसे कितनो के घरो का चूल्हा जल रहा है। नए साल में आप सब कुछ बने परंतु स्वार्थी न बने।  आप सभी का नया साल हर्ष से परिपूर्ण हो इसी मंगल कामना के साथ विदा लेता हूँ।  

चलते चलते 

इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ

लो साथ छोड़ने लगा आख़िर ये साल भी

– हफ़ीज़ मेरठी

 

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